वे कुछ क्षण
जो हमने तुमने मिलकर
इश्वर से माँगे थे I
वे कुछ क्षण
जिनको अपने साहस के बल पर
छीन लिया था
कालचक्र में बँधी हालतों के हाथों से I
वे क्षण
जिनके लिए कभी रोने का, या अनशन का
या सत्याग्रह का
अभिनय करना पड़ा था तुमको
वे क्षण जब अपने हो गए
और जब
उनके दुर्गम गढ़ पर अपनी विजय-पताका फ़हरी
तब
दुनिया वालों की स्वाभाविक चर्चा से या
आरोपों से घबराकर
तुम उन्ही क्षणों को खो देने की सोच रही हो I
अपने हाथों मधुर मिलन के
स्वप्निल शिशु का
गला घोंटने के बारे में सोच रही हो I
तुम्ही कहो
औचित्य कहाँ है इस चिंतन में ?
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