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Tuesday, September 28, 2010

GHAZAL


Ham bhi na ab sach bolenge

Auron jaise ho lenge


Khat na likhenge ham bhi tumhen

Yaad karenge ro lenge


Barsegi jo gham ki ghata

Fasl ashkon ki bo lenge


Ab na karenge zikr unka

Dil hi dil main ro lenge


Fasl-e-baharaan aaye to

Ham phoolon main tolenge


Unki sakha dekhenge ‘Naresh’

Lab na dua ko kholenge

(Sakha : benevolence)

Sunday, September 26, 2010

GHAZAL


Zameen dukhtar-e-man aasmaan pisar mera

Main juzv-e-noor hoon aalam tamam ghar mera

(dukhtar-e-man - My daughter; Pisar - son; Juzv-e-noor - part of the divine light; Aalam - universe)


Ab uska zaaviya yaksar hai mukhtalif mujhse

Wo ek shakhs kabhi tha jo ham-nazar mera

(Zaaviya - angle; Yaksar - Completely; Ham-nazar - co-sighter)


Wo hoor hai ki pari hai ki koyi devi hai

Bayan-e-husn se qaasir hai har hunar mera

(Qaasir - unable)


Harek munh ko nivala harek tan ko libaas

Harek sar ko doon chhat bas chale agar mera


Na koyi raah na manzil na koyi samat ‘Naresh’

Tamaam hoga kahan jaake ye safar mera

(Samat - direction)

Friday, September 3, 2010

मौन


अपराधी की स्थिति में

हम तुम

मौन खड़े हैं I

जैसे अपना अपराधों का ही रिश्ता हो I

आज युगों के बाद मिले हैं

ऐसे जैसे दो अजनबी मिला करते हैं I

तुम ख़ामोशी के दरिया के उस तट पर हो

मैं ख़ामोशी के दरिया के इस तट पर हूँ

जैसे हम तुम

दरिया पार नहीं कर सकते I

Wednesday, September 1, 2010

विभाजन


यह माना कि तुमने धरा बाँट ली है,

मगर क्या कभी बाँट लोगे पवन भी?

कभी चाँदनी का विभाजन करोगे?

यह माना कि तुम बाँट लोगे गगन भी I


मुहल्ले शहर गाँव बाज़ार कूचे,

गगन चूमते पर्वतों की शिखाएं I

यह माना कि तुम बाँटने पर जो आये,

तो बँट जाएँगी मकबरों की शिलाएं I

मगर क्या कभी धूप भी बँट सकेगी?

यह माना कि तुम बाँट लोगे अरुण भी I


पके खेत खलिहान भण्डार धन के,

मचलती हुई खेतियाँ बाँट लोगे I

यह माना कि तुम बाँटने पर जो आये,

तो धरती की सब बेटियाँ बाँट लोगे I

मगर क्या कभी मौत भी बँट सकेगी?

यह माना कि तुम बाँट लोगे कफ़न भी I


बसें गाड़ियाँ दफ़्तरों के मुलाज़िम,

किले खाइयाँ खण्डहर बाँट लोगे I

यह माना कि तुम बाँटने पर जो आये,

तो पूजा इबादत के घर बाँट लोगे I

मगर क्या सुगंधी कभी बँट सकेगी?

यह माना कि तुम बाँट लोगे चमन भी I


विभाजन कठिन तो नहीं दोस्तो, पर,

कभी काश सोचो ज़रा ध्यान देकर I

कि इक बार धागा अगर टूट जाए,

तो जुड़ता है, लेकिन नयी गाँठ लेकर I

यह माना कि खुशियाँ बँटा लोगे फिर भी,

कभी काश तुम बाँट पाओ चुभन भी I