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Wednesday, December 29, 2010

ग़ज़ल


मैं भला हूँ या बुरा इन्सान हूँ I

आपके इस दौर की पहचान हूँ I


मुझको दीवारों पे चस्पाँ कीजिए,

मैं किसी के इश्क़ का ऐलान हूँ I


तू मेरी भूली हुई पहचान है,

मैं तेरा टूटा हुआ पैमान हूँ I

(पैमान - वादा)


क्या सबुक-साराने-साहिल को ख़बर,

मैं कभी कश्ती कभी तूफ़ान हूँ I

(सबुक-साराने-साहि - किनारे के असम्बद्ध लोग)


वो अगर तौबा है रिन्दों की 'नरेश',

मैं जनाबे शैख़ का ईमान हूँ I

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