सब निगाहों का है धोखा दोस्तो I
आईना-खाना है दुनिया दोस्तो I
(आईना-खाना - शीशे का घर)
भर गया जो कल दिया था दोस्तो,
और कोई ज़ख्म ताज़ा दोस्तो I
क्या हुई वो गैरते-ज़ब्त आप की,
तंग-दामनी का शिकवा दोस्तों I
(गैरते-ज़ब्त - धैर्य का आत्माभिमान; तंग-दामनी - कंगाली)
क्या मजाल उसकी जो पानी मांग ले ,
आपने हो जिसको काटा दोस्तों I
पहले अपने खालो-ख़त ही देख लो,
फिर दिखाना मुझको शीशा दोस्तो I
(खालो-ख़त - आकृति)
बारे-अहसाँ से न क्योंकर टूटता,
दोस्ती का कच्चा धागा दोस्तों I
(बारे-अहसाँ - अहसान का बोझ)
ये 'नरेश'-ए-खस्ताजानो-खस्तादिल,
तुम में रहकर भी है तनहा दोस्तो I
(खस्ताजानो-खस्तादिल - घायल जीवन और भग्न-ह्रदय)
आदरणीय नरेश जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
सब निगाहों का है धोखा दोस्तो
आईना-खाना है दुनिया दोस्तो
तमाम अश्'आर ख़ुबसूरत हैं । ब्लॉग पर लगी हर ग़ज़ल मुकम्मल और रवां-दवां है … वाह वाऽऽह !
♥ हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार