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Monday, April 25, 2011

ग़ज़ल



सब निगाहों का है धोखा दोस्तो I

आईना-खाना है दुनिया दोस्तो I

(आईना-खाना - शीशे का घर)


भर गया जो कल दिया था दोस्तो,

और कोई ज़ख्म ताज़ा दोस्तो I


क्या हुई वो गैरते-ज़ब्त आप की,

तंग-दामनी का शिकवा दोस्तों I

(गैरते-ज़ब्त - धैर्य का आत्माभिमान; तंग-दामनी - कंगाली)


क्या मजाल उसकी जो पानी मांग ले ,

आपने हो जिसको काटा दोस्तों I


पहले अपने खालो-ख़त ही देख लो,

फिर दिखाना मुझको शीशा दोस्तो I

(खालो-ख़त - आकृति)


बारे-अहसाँ से न क्योंकर टूटता,

दोस्ती का कच्चा धागा दोस्तों I

(बारे-अहसाँ - अहसान का बोझ)


ये 'नरेश'-ए-खस्ताजानो-खस्तादिल,

तुम में रहकर भी है तनहा दोस्तो I

(खस्ताजानो-खस्तादिल - घायल जीवन और भग्न-ह्रदय)




1 comment:

  1. आदरणीय नरेश जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    सब निगाहों का है धोखा दोस्तो
    आईना-खाना है दुनिया दोस्तो


    तमाम अश्'आर ख़ुबसूरत हैं । ब्लॉग पर लगी हर ग़ज़ल मुकम्मल और रवां-दवां है … वाह वाऽऽह !


    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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