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Friday, June 13, 2014

तकल्लुफ़ बरतरफ़




आओ दो इक लम्हे मेरे साथ गुज़ारो
मैं भी तुम जैसा ही बेबस बेचारा हूँ
मेरे दिल में भी यादों का धुआँ भरा है
मेरे दिल में भी हसरत की चिता
न जाने कब से
अब तक सुलग रही है
लेकिन मैं अपने ग़म को
अपने अन्दर ही दफ़न किए हूँ
तुम पर क्या
मैंने अपने पर भी
अपना ग़म ज़ाहिर होने नहीं दिया है।

मैं हँसता हूँ
पहले कोशिश से हस्ता था
अब हँसने की आदत सी है

आओ तुम्हारे दर्द भरे लम्हों को
अपनी इस आदत की तेज़ हवा में
उड़ा-उड़ा कर दूर भगा दूँ

हो सकता है फिर तुम भी
अपने ग़म को अपने सीने में दफ़्नाकर
मेरी तरह हसने लग जाओ। 

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