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Sunday, August 8, 2010

ग़ज़ल

अभी हमको ये फ़न आया नहीं है।

उसे चाहें जिसे देखा नहीं है।


हर इक शै में तेरा जल्वा है लेकिन,

कोई जल्वा तेरे जैसा नहीं है।


निगाहें बे-ज़बाँ हैं क्या बताएं,

ज़बान ने आपको देखा नहीं है।


तेरे जल्वे तो रोशन हैं बहरसू ,

हमीं को ताब -ए-नज़्ज़ारा नहीं है।

(बहरसू : हर तरफ़ ;

ताब -ए -नज़्ज़ारा : देखने की शक्ति


तुम्हारा भेद क्या पाएँ कि हम ने,

अभी ख़ुद को भी पहचाना नहीं है।


उसी का इश्क़ हो पहचान अपनी,

‘नरेश ’ अपना नसीब ऐसा नहीं है।

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