अभी हमको ये फ़न आया नहीं है।
उसे चाहें जिसे देखा नहीं है।
हर इक शै में तेरा जल्वा है लेकिन,
कोई जल्वा तेरे जैसा नहीं है।
निगाहें बे-ज़बाँ हैं क्या बताएं,
ज़बान ने आपको देखा नहीं है।
तेरे जल्वे तो रोशन हैं बहरसू ,
हमीं को ताब -ए-नज़्ज़ारा नहीं है।
(बहरसू : हर तरफ़ ;
ताब -ए -नज़्ज़ारा : देखने की शक्ति
तुम्हारा भेद क्या पाएँ कि हम ने,
अभी ख़ुद को भी पहचाना नहीं है।
उसी का इश्क़ हो पहचान अपनी,
‘नरेश ’ अपना नसीब ऐसा नहीं है।
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