हक़ - शनासी की इब्तिदा मौला
कौन हूँ मैं मुझे बता मौला
(हक़-शनासी - Identification
of Truth; इब्तिदा - beginning)
मुझ में वो जुस्तजू जगा मौला
ढूंढ़ पाऊँ तेरा पता मौला
(जुस्तजू - craze)
तू नज़र आये ज़र्रे-ज़र्रे में
आँख को देखना सिखा मौला
जो तेरे बिन ना तुझ से कुछ माँगे
वो गदागर मुझे बना मौला
(गदागर - beggar)
मेरे माथे पे लिख दे नाम अपना
मुझ को अपना पता बना मौला
आँसू-आँसू में अक्स हो तेरा
मुझको यूँ भी कभी रुला मौला
(अक्स – reflection)
अर्श भी तेरा फर्श भी तेरा
जग है क्यूँ मसअला मौला
(अर्श - sky; फर्श - earth;
मसअला - problem)
होंठ सीखेंगे कब ज़बां चुप की
बंद कब होगा बोलना मौला
रोते बच्चे को गोद में ले ले
दे ना जन्नत का झुनझुना मौला
तू तगाफुल-पसंद है या फ़िर
बे-असर है मेरी दुआ मौला
(तगाफुल -पसंद - leisure-loving;
बे-असर - ineffective)
शेर फरयाद है 'नरेश' अपनी
शायरी है सदा-ए-या मौला
(सदा-ए-या - Cry for the Lord)
the flow is beautiful...
ReplyDeleteloved the choice of wordds...
regards,
The Silhouette...
बेहद भावपूर्ण तथा खुबसूरत शेरों से सजी - जीवन के प्रति सच्चे सन्देश देती लाजवाब ग़ज़ल - यहाँ पढवाने के लिए आभार
ReplyDeleteअ
ReplyDeleteत्युत्तमम्
भवतां हार्दिक धन्यवाद:
बहु शोभना गज्जलिका
very beautiful...and thanks for adding the meaning as it makes people like me who want to increase their vocabulary, a fairly good idea about the writings. regards.
ReplyDeletevandana
बहुत ख़ूब !
ReplyDeleteनरेश जी
अभी अचानक पहुंचा हूं आपके ब्लॉग पर …
फ़िदा हो गया हूं आपकी शाइरी पर …
बहुत बहुत मुबारकबाद !
शस्वरं
पर आपका हार्दिक स्वागत है , आइए…
- राजेन्द्र स्वर्णकार