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Tuesday, June 22, 2010

ग़ज़ल

हक़ - शनासी की इब्तिदा मौला
कौन हूँ मैं मुझे बता मौला
(हक़-शनासी - Identification
of Truth; इब्तिदा - beginning)

मुझ में वो जुस्तजू जगा मौला
ढूंढ़ पाऊँ तेरा पता मौला
(जुस्तजू - craze)

तू नज़र आये ज़र्रे-ज़र्रे में
आँख को देखना सिखा मौला

जो तेरे बिन ना तुझ से कुछ माँगे
वो गदागर मुझे बना मौला
(गदागर - beggar)

मेरे माथे पे लिख दे नाम अपना
मुझ को अपना पता बना मौला

आँसू-आँसू में अक्स हो तेरा
मुझको यूँ भी कभी रुला मौला
(अक्स – reflection)

अर्श भी तेरा फर्श भी तेरा
जग है क्यूँ मसअला मौला
(अर्श - sky; फर्श - earth;
मसअला - problem)

होंठ सीखेंगे कब ज़बां चुप की
बंद कब होगा बोलना मौला

रोते बच्चे को गोद में ले ले
दे ना जन्नत का झुनझुना मौला

तू तगाफुल-पसंद है या फ़िर
बे-असर है मेरी दुआ मौला
(तगाफुल -पसंद - leisure-loving;
बे-असर - ineffective)

शेर फरयाद है 'नरेश' अपनी
शायरी है सदा-ए-या मौला
(सदा-ए-या - Cry for the Lord)

5 comments:

  1. the flow is beautiful...

    loved the choice of wordds...

    regards,
    The Silhouette...

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  2. बेहद भावपूर्ण तथा खुबसूरत शेरों से सजी - जीवन के प्रति सच्चे सन्देश देती लाजवाब ग़ज़ल - यहाँ पढवाने के लिए आभार

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  3. त्युत्तमम्

    भवतां हार्दिक धन्‍यवाद:

    बहु शोभना गज्‍जलिका

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  4. very beautiful...and thanks for adding the meaning as it makes people like me who want to increase their vocabulary, a fairly good idea about the writings. regards.
    vandana

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  5. बहुत ख़ूब !
    नरेश जी
    अभी अचानक पहुंचा हूं आपके ब्लॉग पर …
    फ़िदा हो गया हूं आपकी शाइरी पर …
    बहुत बहुत मुबारकबाद !


    शस्वरं
    पर आपका हार्दिक स्वागत है , आइए…

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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